समाधि :-
समाधि :-
अष्टांग योग का आठवां अंग है समाधि ।
प्रत्येक साधक की साधना का लक्ष्य समाधि है । अगर कोई साधक समाधि के लिए साधना नहीं करता तो समझना चाहिए कि वो लक्ष्य से भटका है ।
प्रत्येक साधक की साधना का लक्ष्य समाधि है । अगर कोई साधक समाधि के लिए साधना नहीं करता तो समझना चाहिए कि वो लक्ष्य से भटका है ।
समाधि भावातीत अवस्था है । समाधि अद्वैत अवस्था है ।
समाधि अव्यक्त अवस्था भी है ।
समाधि अव्यक्त अवस्था भी है ।
जहाँ सारी भावनाएं शून्य हो जाती हैं । वहाँ ना सुख है ना दुख । ना प्रेम है ना द्वेष । ना लाभ है ना हानि । वह परम परमानंद है ।
समाधि सिद्धियों के परे कि अवस्था है वहाँ सिद्धियों का खेल नहीं चलता । और योगी सिद्धियों का मोह त्याग कर ही समाधि की ओर अग्रसर हो सकता है। यही सच्चा वैराग्य है ।
पतंजलि योगसूत्र के अनुसार दो अवस्थाओं का वर्णन है :-
सम्प्रज्ञात एवं असम्प्रज्ञात
सम्प्रज्ञात एवं असम्प्रज्ञात
सम्प्रज्ञात :- वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता इन चारों से युक्त सम्यक ज्ञान पूर्वक अवस्था है ।
असम्प्रज्ञात :- इसमें मन बुद्धि चित्त एवं अस्मिता के सम्पूर्ण क्रियाओं का विराम होता है ।
सवितर्क समाप्ति: एवं निर्वितर्क समाप्ति: :-
सवितर्क समाप्ति :- इस अवस्था में योगी किसी विचार एवं भाव से ग्रसित या किसी भाव में आसक्त तो नहीं होता लेकिन उसके चित्त में विचारों का संक्रमण बना रहता है ।इस अवस्था में शब्द अर्थ एवं उससे उत्पन्न ज्ञान मिश्रित अवस्था में रहते हैं ।
निर्वितर्क समाप्ति:- जब स्मृति शुद्ध हो जाती है । अर्थात स्मृति में अब किसी भी गुण का संग ना हो । कोई तर्क वितर्क ना हो तो वह निर्वितर्क समाप्ति है ।
सबीज समाधि एवं निर्बीज समाधि:-
सबीज :- उपयुक्त अवस्थाओं में पूर्व कर्मों का बीज नष्ट नहीं होता अतः वह सबीज समाधि है। सबीज समाधि में अस्मिता सूक्ष्म रूप से रहती है । बीज शरीर विद्यमान रहता है ।
निर्बीज समाधि :- इस अवस्था में सम्पूर्ण संस्कारो का निरोध हो जाता है । सूक्ष्म शरीर एवं कारण शरीर का सम्पूर्ण लय हो जाता है । यहाँ जीव के अस्तित्व का लय हो जाता है किसी प्रकार की कोई अभिव्यक्ति नहीं होती । कोई अस्मिता नहीं होती ।
अगर हम सागर को ब्रह्म मान लें तो सागर की लहरें जीव हैं । सम्पूर्ण लहरों का शांत हो जाना ही समाधि हैं यहाँ तक कि उनके अस्तित्व के कारण का समाप्त हो जाना ही निर्बीज समाधि है ।
निर्बीज समाधि ही शुद्ध समाधि है अन्यथा अन्य सभी अवस्थाएं अशुद्ध समाधि है । अपूर्ण अवस्थाएं हैं ।
मृत्यु की अवस्था में मात्र स्थूल देह ही नष्ट होता है । सूक्ष्म शरीर एवं कारण शरिर सम्पूर्ण कर्म संस्कारों के साथ विद्यमान रहता है । अतः मृत्यु के समय, सांसारिक आसक्ति वश जीव अपने मृत देह में प्रवेश करने का प्रयास करता है । लेकिन स्थूल शरीर क्षतिग्रस्त होने के कारण ।उपयोग के योग्य ना होने के कारण ही जीव उस देह का त्याग करता है ।
समाधि की अवस्था में तो जीव का जीवत्व ही नहीं रहता । सूक्ष्म शरीर एवं कारण शरीर का भी लय हो जाता है । जीव मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ।
सूक्ष्म शरीर से सिद्धियों के माध्यम से यात्रा करने वाले योगी । समाधि तक नहीं पहुंचते । समाधि की अवस्था में कोई लोक परलोक नहीं होता जहाँ योगी यात्रा करने जाएगा ।
समाधि की अवस्था ही शिष्य और गुरु का मिलन है । यही पूर्णावस्था है ।
एक सिद्ध योगी अपने स्थूल देह को छोड़ कर दुबारा अपने शरीर में आ सकता है। लेकिन यह समाधि नहीं है । यह परकाया प्रवेश की सिद्धि है । जिसका वर्णन पिछले लेख में किया गया था ।
शिष्य अपने (आध्यात्मिक) गुरु को अथवा परमात्मा को तभी प्रसन्न कर सकता है जब वह समाधि के लिए प्रयासरत रहे । और धर्म प्रचार के माध्यम से दूसरों (जनमानस) को भी ऐसी ही प्रेरणा दे । क्योंकि समाधि ही लक्ष्य है । समाधि कोई स्वार्थ नहीं है । हाँ सिद्धियों की प्राप्ति स्वार्थ है । सम्पूर्ण साधना, गुरु सेवा एवं सत्संग का एक ही फल है समाधि ।
समाधि में तपस्या, साधना, आध्यात्मिक शास्त्रों के पठन-पाठन, सम्पूर्ण ज्ञान सम्पूर्ण मान सम्मान एवं अस्मिता, सांसरिक त्याग से उत्पन्न त्याग की भावना एवं सेवा करने से सेवक होने के भाव का भी सम्पूर्ण समर्पण हो जाता है ।
समाधि में ना ध्येय है ना ध्याता है ना ध्यान है । ना कर्म है ना कर्ता है और ना कोई कारक है। ना कोई गुरु है ना कोई शिष्य है । ना कोई भगवान है ना कोई भक्त है । क्योंकि यह सब कुछ भाव जगत में संभव है । और समाधि भावातीत अवस्था है ।
यह भाव जगत ही भवसागर है । और इस भव सागर से पार उतरना ही जीव का लक्ष्य है । गुरु शिष्य का संबंध भी इसी लक्ष्य को लेकर चलता है ।
गोस्वामी तुलसी दास जी उत्तर कांड में लिखते हैं । :-
एक व्याधि बस नर मरही ए असाधि बहुब्याधि। पीढ़ही संतत जीव कहूँ सो किमी लहै समाधि ।
Samadhi ke bare me aapne samajhaya. Samadhi tak pahunchne ki vidhi nahin bataya. kripaya guide karen
ReplyDeleteमैने हंस योग की दिक्षा (अनुग्रह) लिया हुआ है कुंडलिनी सहस्रार तक स्पंदीत है. अनाहत नाद सुनते सुनते मे मेरा शरीरी भाव खो जाता हु कभी कभी बेहोशी आ जाती है क्या यही समाधी अवस्था है.कृपया मार्गदर्शन करे. मेरा मो.नं.9833551110
ReplyDeleteAe bhaiyya jab tujhe samadhi ka hi gyan na hai
DeleteToh itni lambi na pheke kare.kya apke guru apko itna bhi na bta paye.yeh blog toh hum jaise aam logo ne adhyatm ka gyan padh likh diye hai