WALKING-MEDITATION
चलित - ध्यान
(Manish Dev)
वर्तमान समय में कई लोग इस बात को लेकर संशय ग्रस्त रहते हैं, कि 'चलित ध्यान' अथवा 'नित्य ध्यान' या 'walking Meditation' क्या होता
है | उनका मानना है कि ध्यान तो बैठ कर ही किया जाता है, फिर चलते फिरते ध्यान कैसे किया जाए | जैन, बौद्ध, योग एवं वेदांत जैसे सभी प्राचीन दर्शनों में चलित-ध्यान अथवा नित्य ध्यान का वर्णन मिलता है |
एक समय भगवान् बुद्ध अपने भिक्षुक शिष्यों के साथ वन विहारों से गुजर रहे थे | सैकड़ों भिक्षुक, तथागत के पद-चिन्हों का अनुसरण करते हुए चल रहे थे | तभी अचानक! भगवान् बुद्ध रुके और पीछे मुड़ कर सभी शिष्यों पर अपनी नज़र दौडाते हुए एक शिष्य पर उनकी नजर रुक गई | भगवान् बुद्ध ने उस शिष्य को देखते हुए कहा "राहुल तुम क्या सोच रहे हो ? मैं कुछ समय से अपने शिष्य समुदाय से कुछ नकारात्मक तरंगों को पकड़ रहा हूँ | मैं देख रहा हूँ कि कोई अपने नकारात्मक विचारों को नियंत्रित करने में असफल हो रहा है |" तब राहुल ने दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् बुद्ध से कहा " हाँ भगवन ! मैं काफी समय से नकारात्मक विचारों के वशीभूत हूँ | आपके ईस धम्म-पथ पर चलना मेरे लिए कठिन हो रहा है |" तब भगवान् बुद्ध ने राहुल से कहा "राहुल ! क्या तुम चलित-ध्यान की अवस्था में नहीं रहते ? अगर तुम चलित ध्यान का अभ्यास करोगे तो निश्चित हीं अपने मन की चंचलता पर नियंत्रण कर पाओगे |" तब राहुल ने भगवान् बुद्ध से कहा "भगवन मैं प्रति दिन बैठ कर ही ध्यान करता हूँ, 'चलित-साधना' अथवा 'चलित-ध्यान' का मुझे कोई ज्ञान नहीं है |" तब भगवान् बुद्ध ने राहुल से कहा "राहुल तुम अपने बढ़ते हुए हर एक पग के साथ अपनी एक एक स्वांस को जोड़ दो | हर स्वांस के साथ अपना एक पग आगे बढाओ , इन स्वांसो की वृति में अपने मन को लगाए रखो | यह एक वृति अन्य वृतियों को तुम्हारे चित पर हावी नहीं होने देगी | यही 'चलित-साधना' अथवा 'नित्य-ध्यान' है | नित्य ध्यान की अवस्था में रहो! सर्वदा सचेत रहो! तभी तुम्हारा विवेक जागृत रहेगा | और अचेतन-मन की दमनकारी वृतियों से अपनी रक्षा कर पाओगे |"
नित्य कर्म परायण रहते हुए, एक निश्चित वृति से जुड़े रहना ही चलित-ध्यान अथवा नित्य-ध्यान की परिभाषा है | योगी निरंतर अपने मन में एक वृति को बनाए रखता है, जिससे कि अन्य वृतियां उसके ऊपर हावी न हो सके | वह चलते फिरते एवं हर कार्य करते हुए भी अपनी साधना करता रहता है | श्वांसो के माध्यम से ध्यान करने वाले योग-साधक, अपना हर कार्य करते हुए अपना ध्यान अपने श्वांसों पर टिकाये रहते हैं | फिर योगी निरंतर बैठ कर भी अपने धारणा एवं ध्यान का अभ्यास करते हैं | चलित साधना का अभ्यास करने से बैठ कर की गई ध्यान-साधना में शीघ्र हीं परिपक्वता आती है | इसका अभ्यास करने से चेतन-मन का विकास होता है | और साधक उच्च कोटि का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करता है |
भगवान् श्री कृष्ण भी पृथा-पुत्र अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं -
तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ||8.7||
(श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात, हे अर्जुन! तुम निरंतर श्वांस-श्वांस में मेरा स्मरण करते हुए युद्ध भी करो | इस प्रकार तुम निरंतर सचेत अवस्था में रहते हुए इस धर्म-युद्ध में भी सफलता प्राप्त करोगे और निरंतर योग-ध्यान करते हुए मेरे परम धाम को भी प्राप्त करोगे | और यही जीवन की सफलता है |
(मनीष देव )
(Manish Dev)
वर्तमान समय में कई लोग इस बात को लेकर संशय ग्रस्त रहते हैं, कि 'चलित ध्यान' अथवा 'नित्य ध्यान' या 'walking Meditation' क्या होता
है | उनका मानना है कि ध्यान तो बैठ कर ही किया जाता है, फिर चलते फिरते ध्यान कैसे किया जाए | जैन, बौद्ध, योग एवं वेदांत जैसे सभी प्राचीन दर्शनों में चलित-ध्यान अथवा नित्य ध्यान का वर्णन मिलता है |
एक समय भगवान् बुद्ध अपने भिक्षुक शिष्यों के साथ वन विहारों से गुजर रहे थे | सैकड़ों भिक्षुक, तथागत के पद-चिन्हों का अनुसरण करते हुए चल रहे थे | तभी अचानक! भगवान् बुद्ध रुके और पीछे मुड़ कर सभी शिष्यों पर अपनी नज़र दौडाते हुए एक शिष्य पर उनकी नजर रुक गई | भगवान् बुद्ध ने उस शिष्य को देखते हुए कहा "राहुल तुम क्या सोच रहे हो ? मैं कुछ समय से अपने शिष्य समुदाय से कुछ नकारात्मक तरंगों को पकड़ रहा हूँ | मैं देख रहा हूँ कि कोई अपने नकारात्मक विचारों को नियंत्रित करने में असफल हो रहा है |" तब राहुल ने दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् बुद्ध से कहा " हाँ भगवन ! मैं काफी समय से नकारात्मक विचारों के वशीभूत हूँ | आपके ईस धम्म-पथ पर चलना मेरे लिए कठिन हो रहा है |" तब भगवान् बुद्ध ने राहुल से कहा "राहुल ! क्या तुम चलित-ध्यान की अवस्था में नहीं रहते ? अगर तुम चलित ध्यान का अभ्यास करोगे तो निश्चित हीं अपने मन की चंचलता पर नियंत्रण कर पाओगे |" तब राहुल ने भगवान् बुद्ध से कहा "भगवन मैं प्रति दिन बैठ कर ही ध्यान करता हूँ, 'चलित-साधना' अथवा 'चलित-ध्यान' का मुझे कोई ज्ञान नहीं है |" तब भगवान् बुद्ध ने राहुल से कहा "राहुल तुम अपने बढ़ते हुए हर एक पग के साथ अपनी एक एक स्वांस को जोड़ दो | हर स्वांस के साथ अपना एक पग आगे बढाओ , इन स्वांसो की वृति में अपने मन को लगाए रखो | यह एक वृति अन्य वृतियों को तुम्हारे चित पर हावी नहीं होने देगी | यही 'चलित-साधना' अथवा 'नित्य-ध्यान' है | नित्य ध्यान की अवस्था में रहो! सर्वदा सचेत रहो! तभी तुम्हारा विवेक जागृत रहेगा | और अचेतन-मन की दमनकारी वृतियों से अपनी रक्षा कर पाओगे |"
नित्य कर्म परायण रहते हुए, एक निश्चित वृति से जुड़े रहना ही चलित-ध्यान अथवा नित्य-ध्यान की परिभाषा है | योगी निरंतर अपने मन में एक वृति को बनाए रखता है, जिससे कि अन्य वृतियां उसके ऊपर हावी न हो सके | वह चलते फिरते एवं हर कार्य करते हुए भी अपनी साधना करता रहता है | श्वांसो के माध्यम से ध्यान करने वाले योग-साधक, अपना हर कार्य करते हुए अपना ध्यान अपने श्वांसों पर टिकाये रहते हैं | फिर योगी निरंतर बैठ कर भी अपने धारणा एवं ध्यान का अभ्यास करते हैं | चलित साधना का अभ्यास करने से बैठ कर की गई ध्यान-साधना में शीघ्र हीं परिपक्वता आती है | इसका अभ्यास करने से चेतन-मन का विकास होता है | और साधक उच्च कोटि का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करता है |
भगवान् श्री कृष्ण भी पृथा-पुत्र अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं -
तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ||8.7||
(श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात, हे अर्जुन! तुम निरंतर श्वांस-श्वांस में मेरा स्मरण करते हुए युद्ध भी करो | इस प्रकार तुम निरंतर सचेत अवस्था में रहते हुए इस धर्म-युद्ध में भी सफलता प्राप्त करोगे और निरंतर योग-ध्यान करते हुए मेरे परम धाम को भी प्राप्त करोगे | और यही जीवन की सफलता है |
(मनीष देव )
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