Wednesday, 31 January 2018

श्रीराम भक्त - रविदास : संत रविदास गाथा



श्रीराम भक्त - रविदास : संत रविदास गाथा



आज से 600 वर्ष पहले काशी के ग्रामीण क्षेत्रों में एक क्रान्ति आई थी | यह क्रान्ति थी राम भक्ति की | गाँव गाँव से राम भक्तों ने “जय श्री राम “ का जय-घोष लगाना शुरू किया था | प्रभु भक्तों की संख्या बढ़ रही थी वो भी जात-पात के बन्धनों से मुक्त होकर | "श्री राम हमारे हैं, वही तो शबरी और केवट के थे, फिर उनकी भक्ति और पूजा का अधिकार हमसे कौन छीन सकता है |" गाँव गाँव गली गली में जय श्रीराम की गूँज थी | कोई खेतों में काम करने वाले किसान, मिटटी के घड़े बनाने वाले कुम्हार, चमड़े के जुते- चप्पल बनाने वाले चमार, शमशान में अंत्येष्टि करवाने वाले चंडाल, दूध का व्यापार करने वाले ग्वाला, कपड़ों के व्यापारी, मूर्तिकार, राजा के राजपूत सैनिक, और पूजा पाठ करने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मण भी इस भक्ति-क्रान्ति से अछूते नहीं रहे | सब एक एक कर के जुड़ते गए और 'जय श्री राम' जय श्री राम' का जय-घोष होने लगा | 


ईस जय घोष का शंखनाद पंडित शारदानन्द के पाठशाला के एक छात्र एवं उनके पुत्र के परम मित्र रविदास ने किया था | जब पहली बार पंडित शारदा नन्द ने अपने पुत्र को एक निम्न जाती के बालक के साथ खेलते हुए देखा तब वो बड़े नाराज हुए लेकिन जैसे ही एक दिन रविदास उनके सामने आये तब महाज्ञानी पंडित शारदानंद ने रविदास के भीतर छुपे आध्यात्मिक ज्ञान के महासागर को देख लिया और समझ गए कि इस भव-सागर में आध्यात्मिक क्रान्ति की लहरे उठने वाली हैं | और, श्री संतोक दास और श्रीमती कालसा देवी के पुत्र रविदास को अपनी पाठशाला में प्रवेश दे दिया | पंडित शारदानंद का विरोध पुरे ब्राह्मण समाज ने किया लेकिन पंडित शारदानंद अपने निर्णय पर अडिग रहे | एक दिन संध्या के समय खेलते खेलते उनके पुत्र की मृत्यु हो गई | लेकिन पंडी जी के पुत्र ने अपने परम मित्र रविदास को पुनः प्रातः खेल शुरू करने का वचन दिया था | और वचन के अनुसार सुबह सुबह रविदास पंडित शारदानंद के घर अपने मित्र के साथ खेलने कूदने आ गए | लेकिन घर में चारो और उदासी छायी हुई थी दुःख का वातावरण था | माता – पिता दोनों पुत्र वियोग में रो रहे थे | तब बालक रविदास ने पंडी जी से पूछा – “ गुरु जी मेरा मित्र कहाँ है ? उसने मुझे प्रातः लुक्का-छिपी खेलने के लिए बुलाया था” तब पंडित शारदानन्द ने रविदास से कहा “ रविदास, तेरा मित्र अब इस दुनिया में नहीं रहा, उसकी मृत्यु हो चुकी है “ | रविदास ने कहा "नहीं मुझे तो अपने मित्र के साथ खेलना है | बुलाओ उसे ! बताओ मुझे ! कहाँ है मेरा मित्र ?" पंडित शारदानन्द रविदास को अपने पुत्र के शव के पास ले जाते हैं | शव को देखर कर रविदास अपने मित्र को उठाने लगते हैं “ उठो मित्र ! उठो ! देखो तुमने मुझे बुलाया था मैं आ गया हूँ, हम दोनों अब खेलेंगे |” और रविदास की आवाज सुनकर पंडित शारदानन्द का पुत्र उठ खडा हुआ | पंडी जी ने रविदास को अपने गले लगा लिया और कहा आज मेरे घर मेरे श्रीराम आ गए | 'जय श्री-राम' का जय घोष चहूँ-दिशा में गूंजने लगा |


काशी में श्री राम जी के मंदिर के सामने भक्तिमयी लोना देवी श्री राम प्रभु के दर्शन के लिए व्याकुल खड़ी थी लेकिन मंदिर के पुजारी ने उन्हें छोटी जाती का बताकर मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया, और देवी लोना रोने लगीं | भगवान् के दर्शन हेतु इस प्रकार रोते हुए देख रविदास जी ने देवी लोना से पूछा “ देवी आप क्यों रो रही है ?” तब देवी लोना ने अपनी व्यथा रविदास जी को सुनाई | और तब रविदास जी ने कहा चलो मैं तुम्हे भगवान् श्री राम के दर्शन कराता हूँ | संत रविदास लोना को अपने घर के मंदिर में ले गए और प्रभु श्री राम जी का दर्शन करवाया | प्रभु श्रीराम की भक्ति ने देवी लोना और रविदास जी को प्रणय-सुत्र में बाँध दिया | 

और उनकी कुटिया से ही जय श्रीराम का उद्घोष हुआ | और इस उद्घोष की ध्वनी चारों दिशाओं में गूंजने लगी | कई भक्तिमयी आत्माएं जात-पात के बंधन को तोड़ते हुए संत-रविदास के अभियान में जुड़ गए | कई राजा महाराजा भी उनके अनुयाई बने | लेकिन इस प्रकार पूजा पाठ करते हुए देखकर काशी के कुछ पंडित-पुजारियों को अच्छा नहीं लगा | वो अपनी शिकायत लेकर काशी-नरेश के पास पहुँच गए और, और संत रविदास के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग की | राजा ने संत रविदास को राज सभा में बुलाया और, तब आध्यात्म भक्ति को लेकर रविदास जी का पुजारियों से शास्त्रार्थ हुआ | काशी नरेश को संत रविदास की हर बात अच्छी लगी लेकिन साथ ही वो ब्राह्मणों के विरुद्ध भी नहीं जाना चाहते थे | अतः उन्होंने घोसना कर दी की कल गंगा तट पर सभी भगवान् की मूर्ति लेकर आयें, जिसकी मूर्ति डूबेगी नहीं और तैर जायेगी वो भगवान् का सच्चा भक्त होगा | अगले दिन सभी अपने भगवान् की मूर्ति लेकर आये | पुजारियों ने अपनी मूर्ति पर सूत लपेट दिया जिससे वह मूर्ति डूबे ना | और संत रविदास ने तो अपने मंदिर के भगवान् श्री राम जी की मूर्ति ले आये जिनका वजन चालीस किलो के बराबर था | सबने पारी –पारी अपनी मूर्तियाँ गंगा जी में डाली | सबकी मूर्तियाँ डूबते गई लेकिन जब अंत में संत रविदास ने अपने भगवान् श्रीराम जी की मूर्ति डाली तब वह नहीं डूबी और तैरने लगी | फिर से चारो और “जय श्री राम” का जय-घोष होने लगा |

जात-पात के बंधनों से मुक्त होकर सभी प्रभु के भक्ति में जुड़ने लगे |




जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात |
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाती न जात ||


जात पात पूछे नहीं कोए, हरी को भजे सो हरी का होए || 


रघुवर राऊर इहे बड़ाई, निदरी, गनी, आदर गरीब पर 


करत कृपा अधिकाई || (गो. तुलसीदास)




संत रविदास का यह अभियान हिन्दू-एकता का ज्वलंत उदाहरण है | संत रविदास के इस अभियान से हर जाती के लोग बिना किसी भेद भाव के श्रीराम-भक्ति से जुड़ते गए | आज पुनः राष्ट्र को ऐसे अभियान की आवश्यकता है |

"जय श्री राम"

लेखक:- श्री श्री मनीष देव 

Saturday, 13 January 2018

मकर संक्रांति – खगोलीय विज्ञान व् हिन्दू एकता की महाक्रान्ति



मकर संक्रांति – खगोलीय विज्ञान व् हिन्दू एकता की महाक्रान्ति 


भारतीय सनातन संस्कृति आध्यात्म और विज्ञान परक है | इस संस्कृति की परम्पराएं, रीती और रिवाज जो विज्ञान परक हैं, वो मानव कल्याण हेतु प्रारम्भ की गई | ज्योतिष विज्ञान एक महाविज्ञान है | अतः ज्योतिष को उपवेद भी कहा जाता है | भारतीय तिथि-तालिका, पंचांग अथवा विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है | इसे पंचांग इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके माध्यम से ज्योतिष के पांच अंगो की दैनिक जानकारी प्राप्त होती है – तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण | भारतीय पर्व-त्योहारों की तिथियाँ भी इसी पर आधारित होती हैं | भारतीय पंचांग (कैलेंडर) मात्र सूर्य और चंद्रा की गति पर आधारित नहीं होता | इसकी गणना 9 ग्रह, 12 राशियाँ, और 28 नक्षत्रों की गति से की जाती है | और इन्ही गणनाओ पर आधारित पर्व त्योहारों की तिथियाँ निश्चित की जाती है | और इन्ही त्योहारों में एक त्यौहार है मकर-संक्रांति | पुरे भारत वर्ष में इस पर्व को मनाया जाता है |



मकर संक्रांति का पर्व भी पूर्ण रूपेण ज्योतिष गणना पर ही आधारित है | बारह राशियों में दसवीं राशि मकर-राशी है | सूर्य जब धनु राशी से मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति होती है | इस प्रकार सूर्य एक वर्ष में 12 राशियों से गुजरता है | सभी राशि परिवर्तनों को संक्रांति नहीं कहा जाता है | मकर राशि में सूर्य का प्रवेश के साथ सूर्य उत्तरायण भी हो जाता है | कर्क राशि से धनु राशि तक सूर्य दक्षिणायन रहता है और मकर राशी से मिथुन रशिराशी तक सूर्य उत्तरायण रहता है | उत्तरायण होना देवताओं का दिन कहा गया है और दक्षिणायन होना देवताओं की रात्री कही गयी है | अतः इस दिन से सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं | 


मकर-संक्रांति का महापर्व स्नान और दान का भी महा पर्व है | यह योगियों के लिए साधना का पर्व है | मकर संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्त्व है | लेकिन इस स्नान और दान कर्म के पीछे भी ग्रहों का महा विज्ञान है | मकर राशि शनि की राशी है, शनि उसका स्वामी ग्रह है | सूर्य व् शनि दोनों विपरीत प्रकृति के ग्रह हैं | अगर मेष राशी में सूर्य ऊंचा होता है तो उसी मेष राशि में शनि निचा हो जाता है | शनि तुला राशि में ऊंचा होता है तो सूर्य तुला राशी में नीचा हो जाता है | सूर्य देवता और पूण्य ग्रह कहा जाता है लेकिन शनि असुर और पाप-न्याय ग्रह कहा गया है | लेकिन दोनों ही क्रूर ग्रह की श्रेणी में आते हैं | सूर्य शनि के बीच पिता-पुत्र का सम्बन्ध भी है | सूर्य अग्नि का ध्योतक है तो शनि ज्वलनशील तेल का | अगर सूर्य प्रचंड अग्नि- स्वरुप है तो शनि ज्वलनशील तेल के सामान है, जो अग्नि को भड़काने वाला है | जब मकर संक्रांति आती है तो एक क्रूर ग्रह जो अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है वो दुसरे विपरीत प्रकृति वाले क्रूर ग्रह जो कि ज्वलनशील तेल का परिचायक है उसकी राशि में प्रवेश करता है | मकर संक्रांति के दिन दोनों ग्रह अपनी क्रूरता को प्राप्त होते हैं, और प्रभावित लोगों के लिए कष्ट और व्याधियाँ भी लाते हैं | लेकिन सूर्य देव की क्रूरता सृष्टि के कल्याण के लिए ही होती है | धनु राशी का अंतिम चरण और मकर राशी का प्रथम तीन चरण उत्तर-आशाढ नक्षत्र के होते हैं, और इस नक्षत्र के देवता स्वयं सूर्य देव हैं | इस नक्षत्र में सूर्य का प्रवेश अत्यंत ही मंगलकारी होता है |  अतः इसी लिए यह दिन स्नान और दान का दिन है | शनि-देव को शांत रखने के लिए दान करना चाहिए अन्न का दान, काले कम्बल का दान, ऊनी वस्त्रों का दान, मछली को दाना डालना चाहिए, गाय को गुड़ खिलाना चाहिए, दरिद्रों को भोजन कराना चाहिए | प्रातः उठ कर ठीक सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए और सूर्य देव को जल से अर्घ्य अर्पित करना चाहिए, और सूर्य देव से कृपा बनाए रखने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए | आज के दिन अरुणोदय के साथ जल में स्नान करने से औषधीय लाभ प्राप्त होता है | मकर संक्रांति के दिन सात्विक भोजन ही करना चाहिए जिसमे तेल का प्रयोग ना हो और मिर्च मशाले का प्रयोग ना हो अथवा न्यूनतम हो | क्योंकि तेल-मशाले वाले राजसी और तामसी भोजन शरीर में अग्नि बढाते हैं और वैसे ही यह दिन अग्नि का दिन है सूर्य की प्रचंडता का दिन है तो शनि के उबाल का दिन है | सूर्य के उत्तरायण होने और मकर राशि में प्रवेश के साथ इस दिन जाड़े की जड़ता भी ख़त्म होने लगती है | एक नवीन प्रारम्भ होता है खलिहानों से फसल घरो में आने लगते हैं | खुशियों का दिन है तो साथ ही साथ पुण्य-दया-धर्म अर्जित करने का दिन है | यह बूढ़े बुजुर्गों के सम्मान का दिन है, क्योंकि सूर्य-देव शनि-देव के पिता हैं और पिता अपने पुत्र के घर आये हैं | और पिता का सम्मान पुत्र के द्वारा होना चाहिए | यह पर्व पुरे भारत वर्ष और अन्य देशों में भी किसी न किसी रूप में मनाया जाता है | 

मकर-संक्रांति का पर्व पुरे भारत-वर्ष और नेपाल, थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, कम्बोडिया, और श्रीलंका में भी मनाया जाता है यह भारतीय संस्कृति और पुरे भारत-वर्ष की एकता का भी प्रमाण देता है | यह पर्व तमिलनाडु में ‘पोंगल’ और ‘उझवर तिरुनल’ के नाम से, गुजरात और उत्तरखंड में ‘उत्तरायण’, पंजाब में लोहड़ी, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में ‘माघी’, असम में ‘भोगाली बिहू’ (माघ बिहू), उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘खिचड़ी’ और ‘सकरात’ के नाम से, पश्चिम बंगाल में ‘पौष-संक्रांति’, कर्नाटक केरल व् आन्ध्र प्रदेश में ‘संक्रांति’, महाराष्ट्र और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में मकर-संक्रांति के नाम से जाना जाता है |

विदेशों में बांग्लादेश में ‘पौष-संक्रांति’, नेपाल में ‘माघे-संक्रांति’ और खिचड़ी, थाईलैंड में ‘सोंकरण’, लाओस में – ‘पि मा लाओ’, मयन्मार में ‘थिद्यान’, कम्बोडिया में ‘मोहा संगक्रान’ और श्रीलंका में ‘उझवर तिरुनल’ व् ‘पोंगल’ के नाम से मनाया जाता है | यह भारतीय संस्कृति का परचम ही है जो पुरे विश्व में मकर संक्रांति के दिन लहराता है | यह इस बात का प्रमाण है कि विश्व के आध्यात्मिक व् सांस्कृतिक धरातल पर सनातन धर्म की जड़े बहुत गहरी पहुंची हुई हैं |

(श्री श्री मनीष देव)

Thursday, 4 January 2018

“युवा-दिवस” में युवा कौन और कहाँ ?



“युवा-दिवस” में युवा कौन और कहाँ ?
(राष्ट्रीय युवा दिवस)



प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है | और यह दिन है स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिवस | 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में स्वामी विवेकानंद (नरेन्द्रनाथ दत्त) का जन्म हुआ था | और स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर हमारे पुरे देश में ‘राष्ट्रिय युवा दिवस’ मनाया जाता है | स्वामी विवेकानंद आधुनिक युग में सनातन धर्म के पहले प्रचारक थे जिन्होंने सात समंदर पार जा कर विदेशों में सनातन धर्म का परचम लहराया | उनके द्वारा किये गए महान कार्य अविस्मरणीय है | वह भारतीय इतिहास की युग-गाथा में स्वर्ण लिखित है | राष्ट्रिय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद जी के स्मृति में ही मनाया जाता है|



लेकिन, एक प्रश्न उठता है कि ‘राष्ट्रिय युवा दिवस’ स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर उनके स्मृति में ही क्यूँ मनाया जाता है ? क्या युवा दिवस मनाने के लिए कोई दुसरा चरित्र नहीं मिला ? कोई पहलवान ! कोई क्रिकेट या फुटबॉल खिलाड़ी ! या फिर कोई फ़िल्मी सितारा या फिर कोई राजनेता | क्योंकि ज्यादातर युवा तो इन्ही लोगो के पीछे भागते हैं और इनका फैन कहलाते हैं | बहुत कम ही ऐसे युवा होंगे जो स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानते होंगे | जब वर्तमान परिस्थितियों और समय में आज का युवा स्वामी विवेकानंद जी से न प्रभावित नजर आते हैं, ना ही उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, और न ही उनके आदर्शों पर चलते हैं, तो फिर युवा दिवस उनकी स्मृति में क्यों मनाया जा रहा है ? आज के वर्तमान परिवेश में यह ज्वलंत प्रश्न हमारे सामने खड़ा है |


अगर इस प्रश्न के उत्तर को समझना है तो ये भी समझना पडेगा कि युवा कहते किसको हैं ? युवा होने का क्या अर्थ है ? क्या युवा किसी जोश का नाम है ! या ‘युवा’ शक्ति प्रदर्शन का विषय है ! आखिर कौन है युवा ? कौन युवा कहलाने योग्य है ? क्या दाढ़ी मूछ उग जाना युवा होने की निशानी है ? या उम्र के साथ भुजाओं में बल आ जाने का नाम युवा है ? या तरुणी के बाहों में सो जाने का नाम युवा है ? अब यह दो ज्वलंत प्रश्न हमारे सामने उठ खड़े होते हैं |



 आइये ‘युवा’ को समझने का प्रयास करें | अगर ‘युवा’ शब्द को उलटा कर दिया जाए तो वह ‘वायु’ बन जाता है | अब ‘वायु’ का अर्थ होता है ‘हवा’ या ‘पवन’ | बहती हुई हवा ही ‘वायु’ है | और वायु शब्द के अक्षर परस्पर परिवर्तित कर देने से ‘युवा’ हो जाता है | अर्थात ‘युवा’ ‘वायु’ का विपरीत हो जाता है शब्द परिवर्तन से भी और दोनों के अर्थों का मनन करें तो भी दोनों एक दुसरे के विपरीत ही नजर आयेंगे |

‘वायु’ अर्थात एक प्राकृतिक बहाव् एक हवा | ज्यादातर युवा इस प्राकृतिक बहाव में ही बह जाते हैं | लेकिन युवा वह नहीं जो जमाने की हवा में बह जाए | हवा के साथ दौड़ना आसान होता है, और लहरों के साथ तैरना आसान होता है लेकिन तैराक तो वह है जो लहरों के विपरीत दिशा में तैर जाए | और धावक तो वह है जो हवा की उलटी दिशा में दौड़ जाए | और स्वामी विवेकानंद जी का जीवन कुछ ऐसा ही था | जिस उम्र में युवक सुंदर नारी के स्वप्न देखता है, सिगरेट के धुएं उडाता है ! उस उम्र में उन्होंने अपना सर्वस्व धर्म-सेवा और आध्यात्मिक साधना को समर्पित कर दिया | और अपने कर्म से कर्मयोगी ने ऐसी तूफानी लहरे उठायी जिससे सारा विश्व प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका | स्वामी जी ने भारत के युवाओं को जागृत करते हुए कहा :-

“उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम तो स्वछन्द हो, सनातन हो, अमर आत्मा हो, धन्य हो | तुम तत्व नहीं हो न ही तुम शरीर हो | तत्व तो तुम्हारा सेवक है | अपने अन्दर छुपी हुई शक्ति को पहचानो | स्वयम को कमजोर समझना ही सबसे बड़ा पाप है | ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां तुम्हारे भीतर हैं, उठो जागो” |


युवा तो वह है जो जमाने की हवा में ना बहे अपितु जमाने की दिशा और दशा ही बदल के रख दे | युवा तो वह है जो हवाओं का रुख मोड़ दे | एक और ऐसे ही वीर बाँकुरे हमारे देश में हुए जिन्हें “80 साल का जवान” भी कहते हैं –बाबू वीर कुंवर सिंह | सन 1857 की क्रान्ति के मुख्य चरित्र जिन्होंने 80 वर्ष के उम्र में वो कदम उठाया जो उस समय के जवानो को उठाना चाहिए था | इसलिए जवानी उम्र से नहीं जवानी तो जज्बे से देखि जाती है | लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज का युवा किस दिशा में जा रहा है ! क्या वह अपने युवा होने के अर्थ को सार्थक कर रहा है ! क्या युवा राष्ट्र का गौरव बढ़ा रहा है ?

लेकिन दुर्भाग्य पूर्ण है कि आज का युवा नशे के चुल्लू भर पानी में डूबता हुआ नजर आता है | सिगरेट के धुंए उड़ाता हुआ, गाली-गलौज करता हुआ, किसी कमजोर को डराता धमकाता हुआ, अपनी अस्मिता खो कर फ़िल्मी सितारों के पीछे भागता हुआ | अपने ही गाँव-गलियों की बहन-बेटियों पर अश्लील व्यंग करता हुआ नजार आता है, या फिर राष्ट्र-द्रोही ताकतों के हांथो में बिकता हुआ नजर आता है | लेकिन यह सब कार्य तो जमाने की हवा में बह जाने वाली बात हुई | और जो जमाने की हवा में बह गया वो ‘युवा’ कहाँ ! वो तो वायु हो गया, हवा-हवा हो गया ! हमारा भारत देश युवाओं का देश है | युवाओं की जनसंख्या सबसे ज्यादा भारत में है | लेकिन, देश का युवा दिशाहीन नजर आता है | आवश्यकता है मार्गदर्शन की, उसी मार्ग दर्शन की जिसे स्वामी विवेकानंद जी ने हमसब को अपने कर्म और वाणी से प्रदान किया | यही कारण है कि युवा-दिवस स्वामी जी के स्मृति में मनाया जाता है |



स्वामी विवेकानंद जी के इन्ही आदर्शों का अनुसरण करते हुए ‘दिव्य सृजन समाज’ युवाओं को धर्म-सेवा एवं आध्यात्मिक-साधना के प्रति जागरूक करने में निरंतर प्रयासरत है |

(श्रीश्री मनीष देव)

संत बनने की वासना / sant banane ki vasna-

संत बनने की वासना / sant banane ki vasna- https://youtu.be/lGb7E-LBo14