“युवा-दिवस” में युवा कौन और कहाँ ?
(राष्ट्रीय युवा दिवस)
प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है | और यह दिन है स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिवस | 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में स्वामी विवेकानंद (नरेन्द्रनाथ दत्त) का जन्म हुआ था | और स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर हमारे पुरे देश में ‘राष्ट्रिय युवा दिवस’ मनाया जाता है | स्वामी विवेकानंद आधुनिक युग में सनातन धर्म के पहले प्रचारक थे जिन्होंने सात समंदर पार जा कर विदेशों में सनातन धर्म का परचम लहराया | उनके द्वारा किये गए महान कार्य अविस्मरणीय है | वह भारतीय इतिहास की युग-गाथा में स्वर्ण लिखित है | राष्ट्रिय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद जी के स्मृति में ही मनाया जाता है|
लेकिन, एक प्रश्न उठता है कि ‘राष्ट्रिय युवा दिवस’ स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस पर उनके स्मृति में ही क्यूँ मनाया जाता है ? क्या युवा दिवस मनाने के लिए कोई दुसरा चरित्र नहीं मिला ? कोई पहलवान ! कोई क्रिकेट या फुटबॉल खिलाड़ी ! या फिर कोई फ़िल्मी सितारा या फिर कोई राजनेता | क्योंकि ज्यादातर युवा तो इन्ही लोगो के पीछे भागते हैं और इनका फैन कहलाते हैं | बहुत कम ही ऐसे युवा होंगे जो स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानते होंगे | जब वर्तमान परिस्थितियों और समय में आज का युवा स्वामी विवेकानंद जी से न प्रभावित नजर आते हैं, ना ही उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, और न ही उनके आदर्शों पर चलते हैं, तो फिर युवा दिवस उनकी स्मृति में क्यों मनाया जा रहा है ? आज के वर्तमान परिवेश में यह ज्वलंत प्रश्न हमारे सामने खड़ा है |
अगर इस प्रश्न के उत्तर को समझना है तो ये भी समझना पडेगा कि युवा कहते किसको हैं ? युवा होने का क्या अर्थ है ? क्या युवा किसी जोश का नाम है ! या ‘युवा’ शक्ति प्रदर्शन का विषय है ! आखिर कौन है युवा ? कौन युवा कहलाने योग्य है ? क्या दाढ़ी मूछ उग जाना युवा होने की निशानी है ? या उम्र के साथ भुजाओं में बल आ जाने का नाम युवा है ? या तरुणी के बाहों में सो जाने का नाम युवा है ? अब यह दो ज्वलंत प्रश्न हमारे सामने उठ खड़े होते हैं |
आइये ‘युवा’ को समझने का प्रयास करें | अगर ‘युवा’ शब्द को उलटा कर दिया जाए तो वह ‘वायु’ बन जाता है | अब ‘वायु’ का अर्थ होता है ‘हवा’ या ‘पवन’ | बहती हुई हवा ही ‘वायु’ है | और वायु शब्द के अक्षर परस्पर परिवर्तित कर देने से ‘युवा’ हो जाता है | अर्थात ‘युवा’ ‘वायु’ का विपरीत हो जाता है शब्द परिवर्तन से भी और दोनों के अर्थों का मनन करें तो भी दोनों एक दुसरे के विपरीत ही नजर आयेंगे |
‘वायु’ अर्थात एक प्राकृतिक बहाव् एक हवा | ज्यादातर युवा इस प्राकृतिक बहाव में ही बह जाते हैं | लेकिन युवा वह नहीं जो जमाने की हवा में बह जाए | हवा के साथ दौड़ना आसान होता है, और लहरों के साथ तैरना आसान होता है लेकिन तैराक तो वह है जो लहरों के विपरीत दिशा में तैर जाए | और धावक तो वह है जो हवा की उलटी दिशा में दौड़ जाए | और स्वामी विवेकानंद जी का जीवन कुछ ऐसा ही था | जिस उम्र में युवक सुंदर नारी के स्वप्न देखता है, सिगरेट के धुएं उडाता है ! उस उम्र में उन्होंने अपना सर्वस्व धर्म-सेवा और आध्यात्मिक साधना को समर्पित कर दिया | और अपने कर्म से कर्मयोगी ने ऐसी तूफानी लहरे उठायी जिससे सारा विश्व प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका | स्वामी जी ने भारत के युवाओं को जागृत करते हुए कहा :-
“उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम तो स्वछन्द हो, सनातन हो, अमर आत्मा हो, धन्य हो | तुम तत्व नहीं हो न ही तुम शरीर हो | तत्व तो तुम्हारा सेवक है | अपने अन्दर छुपी हुई शक्ति को पहचानो | स्वयम को कमजोर समझना ही सबसे बड़ा पाप है | ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां तुम्हारे भीतर हैं, उठो जागो” |
युवा तो वह है जो जमाने की हवा में ना बहे अपितु जमाने की दिशा और दशा ही बदल के रख दे | युवा तो वह है जो हवाओं का रुख मोड़ दे | एक और ऐसे ही वीर बाँकुरे हमारे देश में हुए जिन्हें “80 साल का जवान” भी कहते हैं –बाबू वीर कुंवर सिंह | सन 1857 की क्रान्ति के मुख्य चरित्र जिन्होंने 80 वर्ष के उम्र में वो कदम उठाया जो उस समय के जवानो को उठाना चाहिए था | इसलिए जवानी उम्र से नहीं जवानी तो जज्बे से देखि जाती है | लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज का युवा किस दिशा में जा रहा है ! क्या वह अपने युवा होने के अर्थ को सार्थक कर रहा है ! क्या युवा राष्ट्र का गौरव बढ़ा रहा है ?
लेकिन दुर्भाग्य पूर्ण है कि आज का युवा नशे के चुल्लू भर पानी में डूबता हुआ नजर आता है | सिगरेट के धुंए उड़ाता हुआ, गाली-गलौज करता हुआ, किसी कमजोर को डराता धमकाता हुआ, अपनी अस्मिता खो कर फ़िल्मी सितारों के पीछे भागता हुआ | अपने ही गाँव-गलियों की बहन-बेटियों पर अश्लील व्यंग करता हुआ नजार आता है, या फिर राष्ट्र-द्रोही ताकतों के हांथो में बिकता हुआ नजर आता है | लेकिन यह सब कार्य तो जमाने की हवा में बह जाने वाली बात हुई | और जो जमाने की हवा में बह गया वो ‘युवा’ कहाँ ! वो तो वायु हो गया, हवा-हवा हो गया ! हमारा भारत देश युवाओं का देश है | युवाओं की जनसंख्या सबसे ज्यादा भारत में है | लेकिन, देश का युवा दिशाहीन नजर आता है | आवश्यकता है मार्गदर्शन की, उसी मार्ग दर्शन की जिसे स्वामी विवेकानंद जी ने हमसब को अपने कर्म और वाणी से प्रदान किया | यही कारण है कि युवा-दिवस स्वामी जी के स्मृति में मनाया जाता है |
स्वामी विवेकानंद जी के इन्ही आदर्शों का अनुसरण करते हुए ‘दिव्य सृजन समाज’ युवाओं को धर्म-सेवा एवं आध्यात्मिक-साधना के प्रति जागरूक करने में निरंतर प्रयासरत है |
(श्रीश्री मनीष देव)
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