Thursday, 2 November 2017

वामपंथ के श्री राम



वामपंथ के श्री राम





भला ! वामपंथ और श्री राम का क्या सम्बन्ध हो सकता है ? यह प्रश्न हमारे मन में इस लेख के शीर्षक को पढ़ कर उठ सकता है | परन्तु सम्बन्ध है ! और गहरा सम्बन्ध है | कैसे ! आइये चर्चा करते हैं, और सर्वप्रथम वामपंथ को समझने का प्रयास करते हैं | ‘वाम’ शब्द का अर्थ होता है बांया अंग्रेजी में (Left) अतः वामपंथियों को लेफ्टिस्ट भी कहा जाता है | आखिर उन्हें लेफ्टिस्ट या वामपंथी कहने का क्या अर्थ है ? 


हमारे शरीर में बांया और दाहिना दो हाँथ होते हैं | दाहिने हाँथ को हम सीधा हाँथ भी कहते हैं, और बायें हाँथ को उलटा हाँथ भी कहते हैं | इसका मतलब यह नहीं है कि वामपंथियो की विचारधारा कोई उलटी विचारधारा है | वामपंथी विचारधारा का तात्पर्य है समाज में जो परम्पराएं चल रही हैं उसे बदल देने की विचारधारा | वामपंथी विचारधारा एक क्रांतिकारी विचारधारा है | वामपंथी विचारधारा के लोग वो होते हैं, जो समाज जिस धारा में बह रहा है उस धारा को वो परिवर्तित करने या विपरीत दिशा प्रदान करने में विश्वास रखते हैं | अर्थात वामपंथी लोग परम्पराओं को बदलने में विश्वास करते हैं | लेकिन, उनका उद्देश्य सुधारवादी होता है | इन परिवर्तनों के माध्यम से वो समाज में सुधार लाना चाहते हैं | वर्तमान वामपंथी विचारधारा के सूत्रधार जर्मन विचारक एवं अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स ही माने जाते हैं | और कार्ल मार्क्स सुधारवादी निति में ही विश्वास करते हैं | समाजवाद, समानता का अधिकार, पूंजीवाद से मुक्ति, धार्मिक भीरुता से समाज की मुक्ति, वर्ग व्यवस्था से मुक्ति, और मजदूर वर्ग को सम्मान और उनका अधिकार उन्हें दिलवाने की सोंच का प्रसार कार्लमार्क्स के द्वारा ही माना जाता है | अतः वर्तमान वामपंथी लोगों को मार्क्सिस्ट, कम्युनिस्ट के नाम से भी जाना जाता है | बाद में इस विचारधारा के आधार पर लेनिनवाद और माओवाद भी आया और बहुत हिंसा भी हुई | उपयुक्त तथ्य वामपंथ को समझने हेतु प्रस्तुत किये गए लेकिन हमारा विषय है कि वामपंथ का सम्बन्ध श्री राम से कैसे हो सकता है | श्री राम तो एक पौराणिक चरित्र हैं, फिर वो तो हमेशा वामपंथ के विरोधी लक्ष्य हुए हैं | परन्तु श्री राम ने बहुत से ऐसे कार्य किये जो सामाजिक रूढ़िवादिता के विरूद्ध नजर आती हैं और सुधारवादी हैं |



जिस दिन श्री राम गुरुकुल से अपने घर वापिस आये ठीक उसी दिन ऋषि विश्वामित्र उन्हें वन की ओर ले जाने का आग्रह उनके पिता महाराज-दशरथ से करने लगे | दशरथ पुनः श्री राम को वन में नहीं भेजना चाहते थे क्योंकि जिस गुरुकुल से वो आये थे वह भी वन-परिवेश में ही स्थित था | महर्षि विश्वामित्र एवं अन्य ग्रामवासियों को हमेशा उपद्रवी असुरों से व्यवधान प्राप्त होता था | असुर निरंतर ऋषि मुनियों एवं ग्रामवासियों पर अत्याचार करते थे | अतः असुरो पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु ऋषि विश्वामित्र श्री राम को दशरथ जी से मांग रहे थे, लेकिन छोटी उम्र और कई वर्षों के बाद गृह वापसी के कारण राजा दशरथ श्री राम को भेजना नहीं चाहते थे | परन्तु स्वयं श्री राम जी ने ही ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने का संकल्प ले लिया था | अतः पिता के मना करने पर भी उन्होंने समाज कल्याण हेतु जाने का निर्णय लिया | तब राजा दशरथ ने श्री राम से कहा “ हे राम अगर तुम जाने का निर्णय ले चुके हो तो अकेले मत जाओ साथ में तुम्हारे अयोध्या की सेना भी जायेगी तुम्हारी अंगरक्षक एवं सहायक बन कर |” परन्तु श्री राम ने सेना को ले जाने से मना करते हुए कहा “ पिता श्री मैं सेना नहीं ले जाउंगा ! मैं वन में जाकर उन वनवासियों और ग्रामवासियों को प्रोत्साहित कर उन्ही की सेना बनाऊंगा और राक्षसों का सामना करूँगा | राम बिना सेना के गए और राक्षसों पर विजय भी प्राप्त किया | फिर बिना अपने माता पिता के जानकारी के गुरु के कहने पर विवाह भी किया | राजा जनक ने सीता-स्वयंवर में शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की शर्त रखी थी, लेकिन श्रीराम ने प्रत्यंचा चढाने के साथ उसे तोड़ दिया | विवाह के तुरंत बाद एक षड्यंत्र के अधीन उन्हें चौदह वर्ष का वनवास दिया गया और श्री राम ने उसे स्वीकार किया | वनवास के समय उन्होंने समाज सुधार और राक्षसों पर प्रतिपंध लगाने की प्रतिज्ञा ली | श्री राम का सर्वप्रथम प्रहार जाती प्रथा पर था | वनवास में जाते ही श्री राम जी ने सर्वप्रथम निषादराज-गुह का आतिथ्य स्वीकार किया, जो कि शुद्र जाती से थे | फिर उसी शुद्र जाती वाले केवट को अपने गले लगाया और उसकी नाव पर गंगा पार किये | जाती प्रथा के उंच-नीच के सारे विचारधाराओं को खंडित करते हुए अनुसुचित-जनजाति की वनवासी शबरी के जूठे बेर भी श्री राम ने खाए | और बहुत सारे ऋषि-मुनि जो शबरी को नीच अथवा शुद्र समझने के कारण शबरी से घृणा करते थे उनको भी श्री राम ने जातिगत भेद भाव से ऊपर उठने का उपदेश दिया और आध्यात्मिक-ज्ञान भक्ति का मर्म समझाया | श्री राम ने वनवास के समय वनवासी जातियों के कल्याणार्थ उन्हें बहुत सारी विद्यायें सिखाई उन्हें स्वावलम्बी बनाया और आध्यात्मिक ज्ञान भक्ति भी दिया |


जब पूंजीपति रावण से युद्ध करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे तब भी उनकी सेना में अयोध्या के प्रशिक्षित सैनिक नहीं थे जिन्होंने एक समय देवताओं के पक्ष में असुरों के विरुद्ध युद्ध किया था और विजय प्राप्त किया था | श्री राम की सेना में वनवासी जातियों के लोग ही थे, जो काफी हद तक श्रीराम जी के द्वारा ही प्रशिक्षित थे | रावण ने लूट-पाट और छल-कपट से बहुत सारा धन एकत्र करके रखा था जिसका प्रयोग वह अपनी सामरिक शक्ति को बढाने और भोग-विलास में करता था | रावण पर विजय के बाद भी श्री राम ने लंका की जनता को अपना दास नहीं बनाया और रावण के भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया | विधवा-पुनर्विवाह का उदाहरण रखते हुए श्री राम ने रावण वध के बाद रावण की पत्नी मंदोदरी का विवाह विभीषण से करवा दिया जिसको मंदोदरी ने भी सहृदय स्वीकृति दी | इस प्रकार श्री राम ने कई क्रांतिकारी कदम उठाये | जिनकी व्याख्या में कई पुस्तके लिखी जा सकती है | और इस आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि श्री राम जी ने समाज की धारा को परिवर्तित करने की चेष्टा की थी लेकिन उनका उद्देश्य सुधारवादी था | इसप्रकार उस समय के अनुसार उन्होंने एक वामपंथी कदम ही उठाया था | उन्होंने उस समय के शुद्र मजदूर वर्ग, ग्रामवासियों और वनवासियों को एकत्र ही किया था परन्तु किसी राजसत्ता पर अधिकार करने के लिए नहीं अपितु जन-कल्याणार्थ | 


परन्तु ! वर्तमान में जो वामपंथ हमारे देश भारत में है वह ‘श्रीराम’ विरोधी है | देवी-दुर्गा जी द्वारा महिषासुर-वध एक क्रांतिकारी घटना और नारीशक्ति का परिचायक है | परन्तु वामपंथियों के लिए रावण और महिषासुर ही भगवान् हैं | देश के वामपंथियों को समलैंगिकता बड़ी नीतियुक्त और प्राकृतिक लगती है | शौच करने के लिए शौचालय अनिवार्य है, लेकिन वामपंथियों को लिंगवृति (sexual act) के लिए खुली छूट चाहिए | वर्तमान वामपंथी(कम्युनिस्ट) पूंजीवाद का विरोध करने के स्थान पर पूंजीपति बनने में लगा है और राजनैतिक सत्ता को हंथियाना ही उसका उद्देश्य नजर आता है | और इसके लिए वो छल-कपट और हिंसा का पूरा सहारा लेते हैं | विश्व के जिन देशों में कम्युनिस्ट सरकार बन चुकी है, वहां भी अभी तक पूँजीवाद समाप्त नहीं हो पाया | मजदूर और गरीब वर्ग अभी भी वैसे ही अस्तित्व में बना हुआ है | कई लोग अभी भी अत्याचार, शोषण और असुविधा के शिकार हो रहे हैं, बस परिवेश बदल रहे हैं | ऐसे में प्रश्न उठ जाता है कि कार्ल मार्क्स का समाजवाद और समानता का अधिकार कहाँ खो गया ?

--मनीष देव

1 comment:

  1. श्रीराम! समाज का यह स्वाभाविक नियम है कि उसमें समयके अनुसार परिवर्तन व समावेश होते ही रहते हैं। अतः ऐसे किसी परिवर्तन या समावेश के लिए किसी वाद या संगठन की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। आवश्यकता बस इतनी होती है कि समाजके ,जीवन के मूल उद्देश्य में विकृति या बाधा न पहुंचे, इसके लिए आवश्यक नियम मर्यादाओं की, व्यवस्था की।।
    जो लोग जीवन को ही कभी परिभाषित नहीं कर पाए, उद्देश्य ही निश्चित कर पाए, भला वे कौनसे परिवर्तन की, और किसलिए बातें करते हैं??

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