Sunday, 11 February 2018

महाशिवरात्रि – आध्यात्मिक रहस्य



महाशिवरात्रि – आध्यात्मिक रहस्य 




महाशिवरात्रि का पावन पर्व श्री शिव पार्वती मिलन का पुण्य दिवस है | यह वही पावन पुनीत रात्री है, जिस रात्री शिव-पार्वती विवाह संपन्न हुआ था | शिव-पार्वती विवाह कोई साधारण घटना नहीं थी | अगर शास्त्रों में वर्णित कथाओं का अनुसरण करें तो इस विवाह-कार्य को संपन्न करने के लिए देवी-देवता, ब्रह्मा, विष्णु, ग्रह, नक्षत्र और सप्त ऋषियों ने भी सतत प्रयास किया था | संसार में तो विवाह, मनुष्य कामनाओं के वशीभूत ही करता है, परन्तु श्री शिव-पार्वती विवाह के पहले कामनाओं के देवता कामदेव ही भष्म हो जाते हैं | अतः महाशिवरात्रि का महापर्व अनेको रहस्यमयी ज्ञान-रत्नों को अपने भीतर समेटे हुए है | यह परम कल्याणमयी रात्री है, यह साधकों की सिद्धि की रात्री है | 





श्री शिव-पार्वती मिलन के आध्यात्मिक रहस्य को प्रगट करते हुए, श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान् शंकर की स्तुतिगान करते हुए लिखते हैं :- 



भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ | 



याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तः स्थमिश्वरम || 



अर्थात- भवानी जी श्रद्धा स्वरुप हैं और शिव जी विश्वास स्वरुप हैं, दोनों ह्रदय में ही वास करते हैं | बिना श्रद्धा और विश्वास के बड़े बड़े सिद्ध जन भी ह्रदय में स्थित ईश्वर का दर्शन नहीं कर सकते | 



भगवान् शिव और माता-पार्वती का मिलन श्रद्धा और विश्वास का मिलन है | अब यहाँ एक प्रश्न आप पाठकों के मन में आकार ले सकता है ! क्या श्रद्धा और विश्वास दोनों भिन्न भिन्न हैं ? और, दोनों के मिलन का क्या तात्पर्य एवं प्रयोजन है ? 



श्रद्धा और विश्वास में वही अंतर है जो सरिता और सागर में है | सरिता और सागर दोनों ही जल को धारण करते हैं, परन्तु सरिता भटकती है और सागर स्थिर रहता है | सरिता का भटकाव तभी तक है जब तक वह सागर में मिल नहीं जाती | इसी प्रकार श्रद्धा और विश्वास है | श्रद्धा भटकती है और विश्वास दृढ होता है | श्रद्धा का आधार ‘प्रेम-समर्पण भाव’ है तो विश्वास का आधार ‘ज्ञान’ है | 



एक समय माता-पार्वती जी भगवान् भोले नाथ से जन्म-मृत्यु का रहस्य पूछती हैं, तब भगवान् शिव-शंकर माता पार्वती से कहते हैं “हे पार्वती तुम्हारा जन्म मरण होता है, परन्तु मैं अजन्मा हूँ |” तब देवी भगवान् के वचनों पर आश्चर्य करते हुए कहती है “हे प्रभो ! यह कैसी विडंबना है, मैं जन्म-मृत्यु के वशीभूत और आप अजन्मे हैं ?” भगवान् शिव-शंकर ने कहा “बिना शिव-तत्व का ज्ञान हुए कोई भी इस जन्म-मरण के काल-चक्र से मुक्त नहीं हो सकता |” तब भगवान् शिव ने देवी को अमरनाथ की गुफा में वो दिव्य-ज्ञान प्रदान किया जिससे जन्म मृत्यु के बंधन को काटा जा सकता है | श्रद्धा जब ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होती है तो विश्वास को प्राप्त हो जाती है | परन्तु यहाँ एक बात स्पष्टतः समझ लेना चाहिए कि यहाँ ज्ञान का तात्पर्य किताबी जानकारी से नहीं अपितु भगवत-साक्षात्कार एवं अनुभव-गम्य ज्ञान से है | श्रीरामचरितमानस के उत्तर काण्ड में गोस्वामी जी लिखते हैं :- 



जाने बिनु न होई परतीति | बिनु परतीति होई नहीं प्रीति || 



प्रीति बिना नहीं भक्ति दृढ़ाई | जिमि खगपति जल के चिकनाई || 



अर्थात- बिना जाने विश्वास नहीं होता | और, बिना विश्वास के प्रेम नहीं होता | अगर मध्य रात्री में कोई अन्जान व्यक्ति हमारे द्वार पर आ जाए तो हम उसे घर में प्रवेश नहीं देते क्योंकि हम उसे जानते नहीं हैं | और इसी कारण उस पर विश्वास नहीं करते | और जिस पर विश्वास नहीं करते, उससे प्रेम नहीं करते हैं | अगर अपने पडोसी, मित्र अथवा भाई पर विश्वास न हो तो उनसे प्रेम भी संभव नहीं है | वैसे ही बिना प्रेम के भक्ति दृढ नहीं होती | और ऐसी भक्ति जो बिना आध्यात्मिक ज्ञान-अनुभूति के हो अर्थात ईश्वरीय रहस्य को बिना जाने हो उस भक्ति और भक्त की स्थिति जल की चिकनाई के सामान हो जाती है | अगर पानी में तेल डाल कर तेल को पानी से मिलाया जाए तो तेल और पानी कभी मिलने वाले नहीं हैं | वैसे ही बिना आध्यात्मिक ज्ञान के भक्त और भगवान् का मिलन भी नहीं हो पाता | अतः बिना आध्यात्मिक ज्ञान के श्रद्धा विश्वास का मिलन भी नहीं होता | और जब आध्यात्मिक ज्ञान होता है तब ही ह्रदय गुहा में स्थित ईश्वरीय तत्व का दर्शन होता है | 





इस प्रकार श्रद्धा और विश्वास का मिलन आवश्यक है | भक्ति और ज्ञान का मिलन भी आवश्यक है | भक्ति और ज्ञान दोनों एक दुसरे के पूरक हैं | अतः भगवान् शिव और पार्वती जी श्रद्धा विश्वास स्वरुप हैं और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्याम से श्रद्धा और विश्वास का मिलन होता है | यह घटना भक्त के ह्रदय में घटती है और बिना श्रद्धा-विश्वास मिलन के भक्ति कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं होने वाली | अतः शिव-पार्वती विवाह भक्त के जीवन में घटने वाली एक आध्यात्मिक क्रान्ति का प्रेरक है | वह आध्यात्मिक क्रान्ति जो भक्तिमयी मीरा बाई के जीवन में संत रविदास से मिल कर आई थी | आध्यात्मिक क्रान्ति जो स्वामी विवेकानंद के जीवन में ठाकुर रामकृष्ण परमहंस से मिलकर आई थी | और ऐसी क्रान्ति प्रत्येक साधक, भक्त और मनुष्य के जीवन में आवश्यक है | तभी वह अपने जीवन को सार्थक कर पायेगा |

-श्री मनीष देव

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