महात्मा बुद्ध जिनके माता-पिता के द्वारा दिया नाम सिद्धार्थ था | जब सिद्धार्थ का जन्म हुआ तब उनके पिता महाराज शुद्धोधन ने प्रसन्न होकर बड़े बड़े विद्वानों, पंडितों एवं ऋषि मुनियों को निमंत्रण दिया | सभी पंडितों एवं ऋषि मुनियों से राजा शुद्धोधन ने विनती करते हुए अपने पुत्र सिद्धार्थ के विषय में भविष्यवाणी करने का आग्रह किया | तब कुछ पंडित विद्वानों ने कहा " हे महाराज आपका पुत्र चक्रवर्ती सम्राट होगा "|
किसी अन्य ने कहा " वो सन्यासी भी होगा "|
एक अन्य विद्वान ने कहा " महाराज आपका पुत्र सम्राट होकर भी सन्यासी जीवन ही जियेगा" |
इन्ही ऋषि मुनियों के बीच असित मुनि भी पधारे थे, असित मुनि ने राजा शुद्धोधन से कहा " महाराज, आपका पुत्र गृहत्यागी सन्यासी ही होगा यही इसका भविष्य है, और उसको ऐसा बनने से कोई नहीं रोक पायेगा " | असित मुनि की भविष्यवाणी सुनकर राजा शुद्धोधन भयभीत हो गए | उनको विश्वास था कि असित मुनि की भविष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती | लेकिन राजा शुद्धोधन नहीं चाहते थे कि सिद्धार्थ सन्यासी बने |
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को बचपन से ही तमाम सुख सुविधाएँ देनी शुरू कर दी, ताकि सिद्धार्थ को दुःख का स्पर्श ही न हो उसे लगे कि यह संसार और घर-परिवार अत्यंत सुखमय है, यहाँ लेश मात्र भी दुःख नहीं है | और इस प्रकार से सिद्धार्थ दुखो से दूर रहेगा और उसके मन में वैराग्य का ख्याल कभी आयेगा ही नहीं | राजा शुद्धोधन ने अपने राज्य से वृद्धों एवं रोगियों को भी बाहर निकाल दिया ताकि उन्हें देखकर सिद्धार्थ के मन में दुःख का भाव ना पैदा हो और उसे यह संसार दुखमय न लगे |
समय बितने लगा सिद्धार्थ किशोरावस्था से युवा अवस्था को प्राप्त होने लगे | सिद्धार्थ के मन में आया कि वह अपने राज्य का भ्रमण करें और राज्य की सीमा के बाहर जाकर भी संसार को देखे | सिद्धार्थ ने अपनी यह इक्षा अपने सारथि चन्ना के समक्ष रखी | तब चन्ना ने उत्तर देते हुए कहा "युवराज आप जहाँ जहाँ कहेंगे मैं आपको वहाँ वहाँ ले जाऊँगा |
सिद्धार्थ अपने सारथि के साथ भ्रमण पर निकल गए | मार्ग में उन्हें कुछ व्याधि-ग्रस्त मनुष्य दिखाई दिए | वे सभी अपने रोगों से अत्यंत पीड़ित थे | कोई भयानक ज्वर से ग्रसित था तो कोई दमा से | एक व्यक्ति जिसका पूरा शरीर कोढ़ से पीड़ित था | यह सब देख कर सिद्धार्थ के मन में प्रश्न उठा - क्या किसी का जीवन इतना दुखमय भी हो सकता है ? फिर सिद्धार्थ ने मार्ग में वृद्ध मनुष्यों को देखा जो अत्यंत वृद्धा अवस्था को प्राप्त कर चुके थे | वो अपनी वृद्धा अवस्था से पीड़ित थे और दुःख भोग रहे थे | फिर आगे बढ़ने पर सिद्धार्थ ने मृत व्यक्ति का शव देखा और जिज्ञासा वश चन्ना से पूछा - " चन्ना इस व्यक्ति को क्या हुआ ? लोग इसे काँधे पर उठा कर क्यों ले जा रहे हैं ?" तब चन्ना ने उत्तर देते हुए कहा " युवराज यह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो चुका है , युवराज! इस जीवन का अंत मृत्यु ही है "| सिद्धार्थ के मन में एक साथ अनेकों प्रश्न उठे - भला यह कैसा अंत है ? क्या इसी का नाम जीवन है ?
सिद्धार्थ इसी प्रकार रोज भ्रमण पर निकल जाते | एक बार उन्होंने डाकुओं के द्वारा लुटे गए गाँव मिले, उस गाँव के लोग बहुत दुखी थे सिद्धार्थ का मन वेदना से भर गया और वो व्याकुल होकर चन्ना से पूछने लगे -" चन्ना इस संसार में तो सब दुखी हैं कोई सुखी नजर नहीं आता | कोई किसी पर अत्याचार कर रहा है तो कोई रोग-व्याधियों से ग्रसित है, कोई वृद्धा अवस्था से पीड़ित है तो कोई मृत्यु को प्राप्त हो रहा है | सिद्धार्थ का मन करुणा से भर गया और सिद्धार्थ ने कहा " चन्ना मुझसे लोगों का दुःख देखा नहीं जा रहा | मैं इनके सारे दुःख दूर करना चाहता हूँ " | राजकुमार सिद्धार्थ ने अपना राज कोष खोल दिया दुखी लोगों के जीवन को सुखी बनाने के लिए | दिन रात दूसरों का दुःख दूर करने में सिद्धार्थ लग गए लेकिन सिद्धार्थ को फिर भी संतोष प्राप्त नहीं हुआ | उन्हें लगने लगा कि " मैं जितना प्रयास करता हूँ इस संसार को दुःख से मुक्त करने में, उतना ही संसार दुखी नजर आता है | ऐसा लगता है जैसे संसार ही दुखमय है" |
एक बार राजकुमार सिद्धार्थ दुखी गरीबों व् दलितों को धन और अन्न वितरण करते हुए काफी दूर वन की ओर निकल गए | वन केसमीप राजकुमार सिद्धार्थ को एक सन्यासी दिखाई दिया जो अपनी बाहरी वेश - भूषा से दरिद्र ही दिखाई दे रहा था परन्तु अन्य दरिद्रों की तरह उसके मुखमंडल पर दुःख के भाव नजर नहीं आ रहे थे | दरिद्र होने के बाद भी उसके मुखड़े पर संतोष और अद्भुत आनंद दिखाई दे रहा था | सिद्धार्थ को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह व्यक्ति दरिद्र होने के बाद भी इतना आनंदित कैसे है ? राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने सारथि चन्ना से पूछा "चन्ना, यह व्यक्ति कौन है जो सबसे अलग बैठा हुआ है ? यह मुझे अन्न-धन वितरण करते हुए देखकर भी मुझ से धन प्राप्ति की ईक्षा नहीं रखता | दरिद्र होने पर भी यह इतना आनंदित क्यों है ?" चन्ना ने कहा " युवराज, यह सन्यासी है | सन्यासी ऐसे ही रहस्यपूर्ण होते हैं | ये सारी इक्षाओं और कामनाओं का त्याग कर चुके होते हैं | इन्हें किसी वस्तु की कोई आवश्यकता अथवा लालसा नहीं होती | अतः यह दरिद्र होकर भी आपसे कुछ प्राप्त करने की आशा नहीं रखता "|
सिद्धार्थ ने कहा "चन्ना यह कैसी अवस्था है ? क्या किसी का मन ऐसी अवस्था में भी हो सकता है जहाँ उसे किसी वस्तु की कोई आवश्यकता ही ना रहे | दरिद्र होकर भी उसके चेहरे पर सम्राटों जैसा तेज़ हो जैसे कि इस सन्यासी के मुखमंडल पर है "| चन्ना - " हाँ युवराज ! यह तो आध्यात्मिक ज्ञान का तेज़ है "| सिद्धार्थ ने कहा " अगर कुछ ऐसा है जिससे मनुष्य मन की सारी उथल पुथल दूर हो जाए तो वो मुझे क्यों नहीं प्राप्त इन सभी दरिद्र, दलितों और गरीबों को क्यों नहीं प्राप्त ? चन्ना! मैं स्वयम इस महान आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त कर सामान्य जन-मानस को उपलब्ध कराऊंगा | और फिर प्रत्येक व्यक्ति का दुःख भी दूर होगा | दुःख का मूल कारण मनुष्य का विकृत मन ही है | धनवान हों अथवा निर्धन सब दुखी हैं सभी व्यथित हैं | दुःख का मूल करण मनुष्य का मन ही है | जब मन सम्यक अवस्था को प्राप्त होगा तब सारे दुःख क्लेश दूर हो जायेंगे "|
सिद्धार्थ ने धन-अन्न वितरण कर के बहुत देख लिया फिर भी दुखियों का दुःख दूर होता हुआ नजर नहीं आया | सिद्धार्थ अपना घर-परिवार त्याग कर आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में वनवासी हो गये | वन में उच्च कोटि के ऋषि मुनियों से मिल कर अध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त किया फिर अपनी साधना से सम्यक अवस्था को प्राप्त कर सामान्य जन-मानस हेतु अष्टांगिक मार्ग को प्रदान किया | जिस अष्टांगिक मार्ग पर चल कर प्रत्येक व्यक्ति अपनी आंतरिक दरिद्रता को दूर कर सकता है | सिद्धार्थ अपने इसी महान ज्ञान के कारण 'बुद्ध' कहलाये |
बहुत अन्न-धन बांटने पर भी जब समस्याओं का समाधान नहीं मिला तब बुद्ध ने ही अपना ज्ञान दे लोगों का दुःख दूर किया | सत्य तो यही है कि समाज में व्याप्त भेद-भाव की भावनाए, भ्रष्टाचार, दुराचार, यह सब आध्यात्मिकता से ही दूर हो सकती है | अतः बुद्ध ने मानव समाज को धम्म का दान दिया |
-----श्री मनीष देव
-----श्री मनीष देव